हेथोर
(तुम कहाँ हो?)
एक अपरिचित भय ने मुझे झकझोर कर जगा दिया। मेरे हृदय में बहुत तेज कंपन हो रहा है। मैंने आँखें खोल कर देखा। मुझे अंधेरा दिखाई दिया। दूर से कोई प्रकाश दिखाई दे रहा है। यह क्या है? मैंने अपनी आँखों को मलने लिए हाथ उठाना चाहा पर असमर्थ रही। मैंने सिर झुका कर इसका कारण जानना चाहा पर मैं सिर को जरा सा भी हिलाने में असमर्थ हूँ। मेरे हृदय की धड़कन और तेज हो गई। मैं डर गई। यह क्या हो गया है मुझे? मैंने समझने की कोशिश की लेकिन एक कठिन वस्तु का आवरण मुझे चारों तरफ से घेरे हुए है। मेरे शरीर के किसी भी अंग को जरा सा भी हिलाने डुलाने का कोई स्थान
नहीं है।
मैंने अपने आप को थोड़ा शांत करने की कोशिश की ताकि मैं समझ सकूँ कि यह क्या हो रहा है? एक तेरह साल की किशोरी अपने को जितना शांत कर सकती है मैं स्वयं को उतना ही शांत कर पाई। मैं तेरह साल की ही तो हूँ। फराओ के महल की एक सेविका हूँ। मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं कहाँ हूँ? मेरे साथ आखिर क्या हो रहा है?
इसे समझने के लिए मैंने अपना ध्यान दूर से आ रहे प्रकाश पर केंद्रित करने का प्रयास किया। मेरी आँखों के सामने दो छेद बने हुए हैं। वहाँ से मुझे कुछ दिखाई दे रहा है। क्या है आखिर यह? अरे यह तो मृत फराओ की समाधि स्थल का गर्भगृह है और मेरे मस्तिष्क में विचारों का, स्मृतियों का मेला लग गया।
कुछ महीने पहले हमारे राजा फराओ की मृत्यु हुई है। वे वृद्ध हो गए थे। अस्वस्थ रहते थे। हम सभी इस घटना के लिए तैयार थे। उनके निधन पर बहुत अधिक दुखी कोई नहीं हुआ। सभी ने इसे एक स्वाभाविक परिणाम के रूप में सहज स्वीकार कर लिया।
राजकीय शोक का पालन किया जाने लगा। फराओ को उनकी अगली यात्रा की अंतिम विदा देने की तैयारियाँ आरंभ हो गई। उनके शरीर को ममी के रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया चलने लगी।
इस समाधि की विधि के लिए अनगिनत तरह के कार्य आरंभ हो गए। राजमहल में ही नहीं, नगर में भी एक तरह के उत्सव का वातावरण बन गया। हर कोई इसी विधि के किसी न किसी भाग से जुड़ा था। हर कोई उत्साह के साथ काम में व्यस्त था।
पर मैं यहाँ क्यों हूँ? आज तो इसी अंतिम विदा का आखरी दिन है। गर्भगृह में सभी तैयारियाँ कर इसे बंद कर दिया जाएगा। मैं यहाँ कभी नहीं आई। मेरे जैसी एक साधारण सेविका का प्रवेश इस कक्ष में वर्जित है। कुछ विशिष्ट मान्य लोग ही इस कक्ष में आ सकते हैं।
मेरा ध्यान अब पूरी तरह से बाहर के दृश्य पर केंद्रित हो गया। मैं सम्मोहित सी बाहर देखने का प्रयास करने लगी। इस कक्ष की दीवारें बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित हैं। ये दीवारें गहरे काले रंग की हैं। दीवारों पर कई मशालें जल रही हैं। इस कक्ष तक सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पातीं। मशालों का प्रकाश दीवारों के काले रंग को और अधिक गहरा बना रहा है।
मैं अपनी अवस्था भूल कर एक किशोर लड़की की उत्सुकता से छेदों के बाहर दिखने वाले दृश्य को ध्यान से देखने लगी। कक्ष के एक दीवार के पास उसके बीचों-बीच हमारे राजा के मृत शरीर को रखने के लिए बनाया गया ताबूत है। ताबूत बंद है। राजा के विशिष्ट विधि से तैयार किए गए मृत शरीर को ताबूत में रखा जा चुका है। उस ताबूत पर सुनहरी चमकदार नक्काशी की गई है। मशालों से निकलने वाले प्रकाश और अंधेरे की छायाएँ समाधि को और भी अधिक रहस्यमय बना रही हैं। एक ऐसा रहस्य जो हृदय में भय मिश्रित कंपन पैदा करता है।
इस कक्ष में मेरे अलावा और भी कुछ लोग उपस्थित हैं। ये राज-दरबार के गिने चुने विशिष्ट और माननीय लोग हैं। सबके चेहरों पर एक भय मिश्रित श्रद्धा का भाव दिखाई दे रहा है। सभी निर्वाक हैं, स्थिर हैं। उनके चेहरों को देखने पर मुझे लगा कि जितनी जल्दी हो सके वे इस कक्ष से निकल जाना चाहते हैं। इस कक्ष में अगर कोई बिना किसी भय और शीघ्रता के भाव से खड़ा है तो वह है मुख्य पुजारी।
कार्यक्रम को संपन्न करने का दायित्व मुख्य पुजारी का ही है। उनके दिशा निर्देश में विशिष्ट दास इसे पूरा करने का कार्य कर रहे हैं। जिस तरह से वे पुजारी के निर्देशों का पालन कर रहे हैं, उसे देख कर मुझे लग रहा है कि उन्हें इस दिन की सभी विधियों का पूर्वाभ्यास कराया जा चुका है। ऐसा लगने का कारण यह भी है कि पुजारी मुख से कुछ नहीं कह रहे हैं सिर्फ संकेतों से निर्देश दे रहे हैं और दास तत्परता से उन निर्देशों का पालन कर रहे हैं। बात तो यहाँ कोई भी नहीं कर रहा है। इतने
सारे लोगों और गतिविधियों के होते हुए भी यहाँ सन्नाटा है, मृत्यु का सन्नाटा।
मैं सम्मोहित सी देख रही हूँ। मैं थोड़ी देर के लिए भूल चुकी हूँ कि मैं कहाँ हूँ और मेरा क्या परिणाम होगा? सम्मोहित होने का कारण भी है। कक्ष में सिर्फ लोग ही नहीं है। इस कक्ष में धन और संपदा का अपार और अद्भुत भंडार भरा है। ऐसी संपदा एक साथ और एक ही स्थान पर मैंने तो अपने तेरह साल के जीवन में पहले कभी नहीं देखी जबकि मैं राजमहल में ही निवास करती हूँ।
एक-एक बार में दो-दो दास बड़े नपे तुले कदमों और पूरी एकाग्रता से एक-एक करके बड़े-बड़े धातु और मिट्टी के पात्रों को लाकर रख रहे हैं। कक्ष का एक बड़ा हिस्सा इन पात्रों से भर चुका है। इन्हें मुख्यतः राजा के ताबूत के आसपास ही रखा गया है। इन पात्रों के अलग-अलग प्रकार के आकार हैं और कुछ पात्र तो अद्भुत रंगो तथा नक्काशी से सज्जित हैं। पात्रों से भी अधिक आकर्षक करने वाली चीज है उन पात्रों में भरी वस्तुएँ। अधिकांश पात्र मुँह तक सोने के सिक्कों, गहनों तथा अनदेखी वस्तुओं से भरे हैं। कुछ पात्रों में भरे कीमती मणियों और पत्थरों की चमक मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रही है। कुछ पात्रों में तथा उनके आसपास मूल्यवान धातु तथा पत्थरों से बनी कलाकृतियाँ, मूर्तियाँ सजाई गई हैं। इनमें से कुछ को मैंने दिवंगत राजा के कक्ष तथा दरबार में पहले भी देखा है।
मशालों के प्रकाश में स्वर्ण तथा मणियों की चमक आँखों एवं दिमाग को चकाचौंध कर रही हैं। एक किशोरी की सहज उत्सुकता से मैं निर्वाक इसे देख रही हूँ और साथ ही मेरे हृदय में क्रोध की एक लहर उठ रही है कि इसी धन-संपदा के कारण आज मैं इस रूप में यहाँ उपस्थित हूँ। मेरी इस भयावह स्थिति का कारण यही धन है। इसी की शक्ति और मद ने आज मेरे लिए यह अंतिम परिणाम निर्मित किया है।
सिर्फ मैं ही इसका शिकार नहीं हूँ। फराओ के इस समाधि कक्ष में खड़े दूसरे अनेक साधारण ताबूतों में रखे मृत शरीर भी इसी धन और सत्ता के अहंकार का शिकार हैं। ये सभी मृत राजा के विशिष्ट अधिकारी और दास दासी हैं जिन्हें राजा की मृत्यु के बाद अगले जीवन में सेवा के लिए राजा के साथ ही सामाधिस्थ कर दिया गया है। हालाँकि हमारे देश में इस सेवा के लिए चुना जाना सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है पर न जाने क्यों मैं आज इसे एक सम्मान के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही हूँ।
पर मैं यहाँ क्या कर रही हूँ? ये सभी तो अब जीवित नहीं हैं फिर इन मृत ताबूतों और समाधि के मध्य में, मैं एक जीवित साँस लेती! तेरह साल की किशोरी! मैं जीवित ही एक ताबूत में बंद क्यों हूँ! मैं बोल क्यों नहीं पा रही! मेरे गले से आवाज क्यों नहीं निकाल रही!
मैं बहुत बेचैन हो उठी जब मैंने देखा कि विशिष्ट मान्य गण धीरे-धीरे दो पंक्तियों में कक्ष से बाहर जा रहे हैं। तो क्या इनका काम पूरा हो गया! क्या यह सभी मुझे यहाँ अकेली छोड़कर चले जाएँगे! क्या किसी को भी यह पता नहीं चलेगा कि एक जीवित किशोरी एक ताबूत में बंद है?
मैं चिल्लाने की कोशिश की पर मेरे मुँह से कोई आवाज नहीं निकली। मैं हाथों को हिलाना चाहती हूँ पर ऊँगलियों को मोड़ने की भी जगह नहीं है। बस मेरी आँखों में भरे आँसू मेरी स्थिति को अभिव्यक्त कर रहे हैं।
विशिष्ट मान्यगण जा चुके हैं। बस पुजारी के निर्देशानुसार वस्तुओं को स्थानांतरित करने और रखने का कार्य दास पूरा कर रहे हैं। उनके व्यवहार से मुझे आभास हो रहा है कि उनका कार्य भी लगभग पूरा हो चुका है। कितने क्षण बीते पता नहीं? उनके यहाँ उपस्थित होने से मुझे हिम्मत मिल रही है पर मैंने देखा कि धीरे-धीरे वे भी कक्ष से बाहर जाने लगे। उनके पीछे पुजारी चल रहे थे। मैं और नहीं देख सकती। मैंने भय से आँखें बंद कर लीं।
मुझे नहीं पता कि मैं कितनी देर तक इसी अवस्था में रही। पत्थरों के हिलने की गड़गड़ाहट ने मुझे चौका दिया। कक्ष का दरवाजा जो बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित है बंद कर दिया जा रहा है। मैं फिर चिल्लाई नहीं-नहीं! मुझे यहाँ अकेले छोड़कर मत जाओ। मैं यहाँ हूँ! देखो मैं यहाँ हूँ! किसी को कुछ सुनाई नहीं दिया। मेरे गले से कोई आवाज नहीं निकली।
थोड़ी ही देर में सब शांत हो गया। मैंने देखा इस कक्ष में मशालों की रोशनी में धन-संपदा से जगमगाता मृत राजा का, मृत दरबार सजा है। इस मृत दरबार में एकमात्र मेरी जीवित आँखें इस दृश्य को देख रही हैं। मुझे याद आ रहा है! नीला आकाश, मेरे मित्र, मेरी युवा इच्छाएँ! मैं दौड़ कर अभी, इस कक्ष से बाहर निकल जाना चाहती हूँ । तभी तेज हवा के प्रवेश करने की आवाज आने लगी। दीवारों पर बने दो छिद्रों से तीव्रता से सफेद धुआँ प्रवेश कर रहा है।
Note: नोट: यह सिर्फ एक ट्रेलर है। यह कहानी इस क्षण के बहुत पहले ही शुरू हो गई है और यह हेथोर के जीवन के विभिन्न रंगीन चरणों से गुजरी है। यह एक लंबी कहानी होने जा रही है। कृपया शेयर करें, लाइक करें, कमेंट करें और सब्सक्राइब करें। शेयर करना और टिप्पणी करना न भूलें।
Disclaimer
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This is purely for entertainment purpose.