JADUI PHUL
जादुई फूल
जादुई फूल
हिमालय के किसी एक पहाड़ पर फूलाई नामक एक छोटा सा गाँव था। बर्फ की ऊँची –ऊँची चोटियों से घिरा, ढेर सारे छोटे-बड़े झरनों से गुनगुनाता, हरा-भरा फूलों से सजा। गाँव के आखिरी छोर पर, जंगल के किनारे, बस्ती से मीलों दूर छोटा सा एक घर था। उस घर में सुन्दर नाम का एक दस साल का लड़का रहता था ।
एक साल पहले उसके पिता की मृत्यु हो गई थी । माँ तो जब वह चार साल का था तभी चल बसी थी । अब वह अकेला था । वह अनाथ था पर साहसी था । उसने निश्चय कर लिया था कि पिता की थोड़ी सी जमीन और अपनी मेहनत के बल पर अपनी देखभाल वह खुद करेगा ।
सुन्दर बहुत ही परिश्रमी, ईमानदार और अच्छे स्वभाव का लड़का था। इसलिए आस पास के गाँव वाले उसे बहुत प्यार करते थे। सुन्दर उनके छोटे-मोटे काम पूरी लगन से करता और बदले में वे उसे रूपए, अनाज, दूध आदि दिया करते सुन्दर जब भी खाली होता तो अपने पिता की जमीन पर सब्जियाँ उगाता।
अपने घर के आस-पास की जमीन पर उसने रंग-बिरंगे फूलों का एक आकर्षक बगीचा बना रखा था। उसे फूलों से बहुत लगाव था। जब भी वह जंगलों में भटकता तो वहाँ खिलने वाले बिना नाम के अद्भुत फूलों के पौधे चुन कर ले आता और बड़े प्यार से उन्हें बगीचे में लगा देता।
उसका बगीचा रंग-बिरंगे जाने अनजाने फूलों का एक इन्द्रधनुष था। जो उसे देखता, देखता ही रह जाता। गिलहरी, तितलियाँ और पक्षी तो सदा उसके बगीचे में मँडराते ही रहते थे। यही नहीं जब भी सुन्दर वहाँ नहीं होता तो परियाँ, बौने, जादुई पक्षी भी उस बगीचे में आकर घूमा और खेला करते थे।
एक दिन सुन्दर अपने बगीचे में फूलों की देखभाल कर रहा था कि अचानक एक गिलहरी उसके सामने आ गिरी। एक बाज उसे पकड़ कर ले जा रहा था कि वह उसकी चोंच से छूट गई। बाजतुरंत उस पर झपटा पर सुन्दर ने टोकरी से गिलहरी को ढँक दिया और लाठी दिखाकर बाज को भगा दिया।
बाज के चले जाने पर टोकरी उठा कर सुन्दर ने गिलहरी को देखा। वह घायल थी और बेहोश थी। उसे चोट लगी थी पर घाव गहरा नहीं था। सुन्दर उसे घर में ले गया। पत्तों और घास से उसने एक छोटा सा बिछौना बनाया। उसने गिलहरी को वहाँ सुला कर उसके घावों पर दवा लगाई, पट्टी बाँधी। थोड़ी-थोड़ी देर में उसके मुँह में रूई से दूध, पानी डालता रहा।
सुन्दर जब इस तरह गिलहरी की देखभाल कर रहा था तो उसने देखा कि वह साधारण गिलहरी नहीं थी। थोड़ी-थोड़ी देर में उसका रंग बदल जाता था। कभी पीला, कभी भूरा, कभी हल्का लाल, कभी सुनहरा। पर सुन्दर ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। तीन दिनों की सेवा और देखभाल के बाद गिलहरी होश में आई।
सुन्दर ने उसके लिए लकड़ी का एक छोटा सा घर बना दिया था। अब वह उसे उसमें रख करकाम पर जाता और आकर उसकी देखभाल करता। एक दिन जब वह बिलकुल ठीक हो गई तो सुन्दर उसे बगीचे में ले गया। उसने प्यार से उस पर हाथ फेरा और बोला – “ मैं तुम्हें कैद करके नहीं रखूँगा। तुम अच्छी हो गई हो तो मैं तुम्हें आजाद करता हूँ। जाओ तुम अपने घर जाओ।"
ऐसा कहना था कि जादू हुआ और वह गिलहरी एक बहुत सुन्दर छोटे से बच्चे में बदल गई। उसके कपड़े राजकुमारों जैसे थे और चेहरे पर चमक थी। वह बोला – “ सुन्दर भैया,मैं परी देश का राजकुमार हूँ। एक दिन मैं अपने मित्रों के साथ रूप बदलने का खेल खेल रहा था। मैंने अपने आपको गिलहरी में बदल लिया तभी वहाँ एक बाज आया और उसने मुझे अपनी चोंच में पकड़ लिया। तुम न बचाते तो आज मैं जिन्दा नहीं होता। मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ मना मत करना। तुम्हें फूलों का बहुत शौक है न, यह लो ये तीन बीज । इनसे जो पौधे उगेंगे उनमें एक एक फूल निकलेंगे। हर फूल में प्राण बचाने की दिव्य शक्ति होगी। अगर तुमने उन फूलों का सही इस्तेमाल किया तो तुम्हें एक और जादुई भेंट मिलेगी। ”
यह कहकर उसने सुन्दर के हाथों में तीन सुनहरे बीज रखे और गायब हो गया। पहले तो सुन्दर अवाक हो गया फिर बड़ी सावधानी ने उसने वे बीज अपने बगीचे के सुरक्षित कोने में लगा दिए ।
कुछ महीने में उनसे तीन पौधे निकले और उनमें तीन कलियाँ आईं। वे कलियाँ दिन में सोने के रंग की और रात को चांदी के रंग की बन जाती थीं। जब फूल खिले तो इतने खूबसूरत थे कि सुंदर बस उन्हें देखता ही रह गया। उनकी सुगंध बड़ी प्यारी और मीलों तक फैली रहती थी। न जाने कितनी तितलियाँ उन पर मंडराती रहती थीं पर अद्भुत बात यह थी कि जब कोई दूसरा व्यक्ति वहाँ आता तो उसे सुगंध तो आती पर फूल दिखाई नहीं देते। ये फूल सिर्फ सुंदर को ही दिखते थे।
एक महीने तक वे फूल खिले रहे और जिस दिन टूट कर गिरे तो सुंदर ने उन्हें संभाल कर रख लिया क्योंकि उसे पता था कि इनमें प्राणों को बचाने की शक्ति है।
एक दिन सुंदर जंगल में लकड़ी इकट्ठी करने गया तो देखा एक पंद्रह साल का लड़कजमीन पर बेहोश पड़ा था। उसके बगल में उसकी माँ और बहन बैठकर रो रही थी। पूछने पर पता चला कि वह अपनी विधवा माँ और बहन का एकमात्र सहारा था। वह जंगल में लकड़ी काटने आया था जहाँ एक विषैले साँप ने उसे काट लिया। साँप का विष पूरे शरीर में फैल चुका था और वह आखिरी साँसे ले रहा था।
सुंदर दौड़ा, अपने घर गया, वहाँ से एक जादुई फूल ले आया। उसे लड़के कि नाक के पास रखा। फूलों में अभी तक तेज सुगंध थी जैसे-जैसे उसकी सुगंध लड़के की साँसों में जाने लगी, वह ठीक होने लगा। थोड़ी ही देर में ठीक होकर बैठ गया। लड़के की माँ ने सुंदर को बहुत आशीर्वाद दिया, लड़के और उसकी बहन ने सुंदर को धन्यवाद दिया।
इस घटना के कुछ दिनों बाद जब सुंदर जंगल में फूलों के पौधे इकट्ठा कर रहा था कि उसे चीते के छोटे-छोटे तीन-चार बच्चे दिखाई दिए। वे बहुत प्यारे थे और भूख से रो रहे थे। सुंदर को देखकर वे भागे। सुंदर उनके पीछे गया तो देखा कि उनकी माँ किसी क्रूर शिकारी की गोली से घायल पड़ी थी और अंतिम साँसे ले रही थी। अनाथ सुंदर उन बच्चों के बारे में सोचकर रो पड़ा। वह भागकर गया और एक जादुई फूल ले आया। उसने माँ चीते की नाक के पास वह फूल रख दिया और दूर खड़ा होकर देखने लगा।
थोड़ी ही देर में माँ चीता स्वस्थ हो गई और प्यार से अपने बच्चों को चाटने लगी। चीते के बच्चे खुशी से माँ के उपर उछल-कूद करने लगे। सुंदर आँखों में खुशी के आँसू और दिल में आनंद लेकर चुपचाप अपने घर लौट आया।
एक दिन सुंदर ने खबर सुनी कि राजकुमारी बहुत बीमार थी और उसके बचने की कोई आशा नहीं थी। राजकुमारी राजा की एकमात्र संतान थी, वह पाँच साल की थी। यह सुनकर सुंदर बहुत दुखी हुआ, वह राजकुमारी को बचाना चाहता था पर राजधानी बहुत दूर थी। वहाँ पर पहुँचने में सुंदर को कई दिन लग जाते और तब तक राजकुमारी का जीवित रहना कठिन था। एक दिन सुंदर यही सोचकर दुखी हो रहा था कि परी राजकुमार उसके सामने अचानक प्रकट हो गया। उसने कहा - “ मैं तुम्हें अभी वहाँ पहुँच सकता हूँ। हमने देखा कि इन फूलों से तुमने किस प्रकार दूसरों की सहायता की है। मैं और मेरे माता-पिता तुम पर बहुत प्रसन्न हैं। हम सदा तुम्हारी सहायता करेंगे। ”
इस प्रकार आखिरी फूल को अपनी जेब में छिपाकर सुंदर जैसे ही खड़ा हुआ, दूसरे हीपल वह राजमहल में खड़ा था। उसने प्रहरी से राजा से मिलने की इजाजत माँगी। राजा ने सभी को अंदर आने देने का आदेश दे रखा था। सुंदर ने राजा को अपना परिचय दिया और प्रार्थना की कि वे उसे राजकुमारी का इलाज करने का एक अवसर दें। राजा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
सुंदर को राजकुमारी के पास ले जाया गया। सुंदर ने जादुई फूल निकाला और उसे राजकुमारी की नाक के पास रखा। धीरे-धीरे राजकुमारी के चेहरे पर चमक आने लगी। ये देखकर सेवक-सेविका खुशी के मारे राजा के पास दौड़े गए। राजकुमारी ठीक होकर बैठ गई। उसने सुंदर की तरफ प्यार से देखा और पूछा - " तुम कौन हो? " सुंदर ने उसे अपना नाम बताया और जादुई फूल उसके हाथों में पकड़ा दिया।
तब तक शोर मच गया और राजा दौड़े-दौड़े आए। राजकुमारी को स्वस्थ देखकर आनंद से उसे गले से लगा लिया। इस शोर के बीच में सुंदर चुपचाप महल से निकल आया। धीरे-धीरे चलते हुए कुछ दिनों में वह अपने घर लौट आया।
राजकुमारी के ठीक होने खबर सुंदर के गाँव तक पहुँच गई। गाँव के लोग आकर सुंदर को यह कहानी आश्चर्य से सुनाते कि कैसे राजा उस लड़के को खोज रहे हैं। सुंदर यह सब सुनता और चुपचाप मुसकुराता। एक दिन सुंदर के छोटे से घर के सामने राजा की सवारी आई। राजा ने उसे आखिर खोज ही लिया था। राजा ने उसे धन्यवाद दिया और उसे अपने साथ महल ले गए। उन्होंने सुंदर को अपने बेटे के रूप में स्वीकार कर लिया।
सुंदर अब राजकुमार बन चुका था और उसका जीवन बदल चुका था। वह अब पढ़ सकता था,ज्ञान प्राप्त कर सकता था और उसे सभी तरह की सुविधाएँ मिल चुकी थीं। सुंदर के पास अब भी एक और जादुई चीज थी।
जब सुंदर ने आखिरी जादुई फूल राजकुमारी के हाथों में रखा था उसके हाथ में तीन और जादुई बीज प्रकट हो गए थे। परी राजकुमार ने बताया कि इनके फूलों से कई तरह के रोग ठीक सकते हैं पर शर्त यह थी कि इनकी देखभाल सिर्फ सुंदर ही कर सकता था।
राजकुमार सुंदर प्रति दिन अपने विशेष बगीचे में थोड़ी देर परिश्रम करता और उन फूलों से लोगों की सहायता करता। राजा बनने पर भी सुंदर यह कार्य करता रहा। इसके कारण उसकी प्रजा के दिल में उसके लिए प्यार और सम्मान भर गया। वह अपनी प्रजा का सबसे प्रिय राजा बन गया था।
“कहानी हमें हँसाती है , रुलाती है, बहलाती है और एक मित्र की तरह बिना डाँटे समझाती भी है ।”